Wednesday, December 9, 2009

सड़क किनारे वो....

सिकुड़े हाथ...सिकुड़े पैर...सिकुड़ा पेट...सिकुड़ा चेहरा.... यहां तक की सारा शरीर सिकुड़न से भरा हुआ है। ये सिकुड़न उसके शरीर में आई कहां से ये तो पता नहीं है लेकिन इस सिकुड़न के पीछे छिपा है एक दर्द....वो दर्द जो शायद ही कोई महसुस कर पाए....दर्द गरीबी का, दर्द भूखे होने का....दर्द मौत का....और ये है दर्द अकेलेपन का। इतना ही नहीं ये दर्द साफ नजर भी आता है....जिसे केवल हमने ही नहीं इसे आप भी पढ़ सकते है। कैसे ?....उसके आंखो से बहते हुए आंसुओ से...। जो ना चाहते हुए भी लोगों को बरबस अपनी ओर खिंचता है।

ये था ही ऐसा की हर कोई इससे रूबरु होना चाहेगा.......हांलाकि हमें इसके बारे में ज्यादा कुछ तो नहीं पता कि आखिर वो कहां से आया और कहां चला गया। लेकिन इतना पता है कि वो बेबस है....लाचार है.....सबके रहते हुए भी अकेला है। दुख बांटने वालों के होते हुए भी इसका दिल ग़म से भरा हुआ है.... अपनों के होते हुए भी सुनी राहों पर चलने को मजबुर है।
इसे देख कर सिर्फ हमारा ही ध्यान उस दिन रफ्तार भरी दुनिया से नहीं हटा.....बल्कि हमारे साथ हमारी जो हमारी रुम मेट थी उसका ध्यान भी उस की तरफ गया.....दराअसल वो था ही ऐसा....एक दिन हम लोग ऑफिस कि ओर ऑटो से आ रहे थे....हमेशा की तरह रेड लाइट पर हमारी ऑटो रुकी और हमेशा की तरह एक पांच साल के बच्चे की गोद में करीब एक या डेड़ साल का बच्चा हमारे पास कुछ पैसे मांगने के लिए आया। वो रो रहा था....बेबस लग रहा था....उसे देखकर एक बार तो हमारा दिल भी पसीज गया....लेकिन दूसरे पल ही हमने सोचा की इनका तो रोज का ये काम है.... क्योंकि वो सड़क के किनारे रहने वाले गुर्जर के बच्चे थे। जो हर रेड लाइट पर रुकने वाली गाड़ी से पैसे मांगते है। लेकिन उस छोटे बच्चे को देखकर शायद ही कोई हो जो ना पिघले...एक तो वो बेबस लग रहा था दूसरे उसके शरीर की सिकुड़न...जिसे देखकर हमें लगा कि...अरे ये बच्चा बचेगा भी या नहीं....या तो उसे मजबुरन मार के रुलाया गया था या वो इस तरह के कामों में ट्रेंड हो गया था। जो भी हो लेकिन वो था ही बहुत ही कमजोर....
अक्सर ये देखा और सुना गया है कि रेड लाइट पर भीख मांगने वाले लोग मजबुर कम और आदत से लाचार ज्यादा होते है....जो सब कुछ होते हुए भी आदतन भीख मांगते है....शहर में इनका एक बहुत बड़ा गिरोह है जो काफी सक्रिय है...और ये अब एक बिजनेस का रुप लेता जा रहा है...और ये बच्चे भी इस बिजनेस का एक हिस्सा या आप इसे मोहरा कह सकते है। जिनको हर तरह से हर परिस्थिति में भीख मांगने के लिए ट्रेंड किया जाता है। इसे आप स्लमडॉग फिल्म देख कर अच्छी तरह से समझ सकते है....

लेकिन कुछ भी हो....उस दिन से आज तक हमारी नजर उस बच्चे को तलाश कर रही है जो आज तक उस रेड लाइट पर हमें नहीं दिखा...डर लगता है कि कहीं उस बच्चे के साथ कुछ अनहोनी ना हो गई हो...या फिर कहीं वो बच्चा किसी और गिरोह का सदस्य ना बन गया हो.....
जो भी हो लेकिन वो जहां कहीं भी हो सही सलामत हो......हमारी यहीं छोटी सी ख्वाहीश है....

आप की इस लेख पर क्या राय है कृप्या करके जरूर अपनी राय दे...आप से नम्र आग्रह है...