Wednesday, May 12, 2010

काशी अब काशी नहीं रही




काशी...वाराणसी...बनारस....
ये वो नाम है जिसे हर किसी ने सुना होगा...चाहे वो देश में रहता हो या विदेश के किसी भी कोने में...ये शहर कुछ तो अपनी संस्कृति के लिए जाना जाता है तो कुछ पवित्रता के लिए...और जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वो ये अपने एक गौरवशाली इतिहास के लिए भी जाना जाता है।ये शहर हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र शहर माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध और जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। ये संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है।
कहते है कि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है...शायद ये बात इस धार्मिक नगरी पर भी हावी हो रहा है। दूर-दूर से लोग यहां गंगा में नहा कर अपने पाप को धोने के लिए आते है...लेकिन शायद उन्हें पता नहीं है कि ये नगरी कितनी जहां वो अपने पाप धोने आ रहे है वहां पापीओं की भरमार है...जो इस विश्वविख्यात नगरी को अपवित्र कर रहे है.....हमारे ख्याल से इस नगारी में इतने पापी बसे है शायद ही देश के किसी कोने में बसे हो।
बेशक आप को ये लेक पढ़ के आर्श्चय होगा लेकिन ये सच है.....ये नगरी अब वैसी नहीं जैसी आज से तकरीबन 10 से 15 साल पहले हुआ करती थी। ऐसा नहीं है कि तब यहां पाप होता ही नहीं था लेकिन मात्रा कम थी। लेकिन अब तो पाप अपनी लक्ष्मण रेखा पार करती जा रही है।

अब हम आप को जो बात बताने जा रहे है....उस कृत्य ने तो हैवानियत की सारी हदें ही पार कर दी। और ये कहीं और की नहीं बल्की पवित्र नगरी वाराणसी में भी एक ऐसी घटना सामने आई है जो शायद हमारी तरह आपके भी रोंगटे खड़े कर दे। वाराणसी में एक गरीब महिला को जबरन चार साल तक अपने ही घर में एक व्यक्ति ने रखा । और चार साल तक उसके साथ दुष्कर्म किया। और जब उसने भागने की कोशिश की तो उसे उसने बुरी तरह मार-पीटा और उसके बाल और भौंहे भी काट डाली। और इस चार सालों में उस महिला ने जो देखा उसे एक टीवी चैनल को बताया उसको शब्दों की परिधी में बांधना बेहद मुश्किल है...। वो महिला लगातार चार वर्षों तक शारिरिक उत्पीड़न का शिकार होती रही...और ये कुकृत्य किसी और नहीं न्याय के मंदिर में जाने वाले न्याय के पूजारी ने किया। वाराणसी के इस वकिल का नाम राघवेंद्र है। राघवेंद्र द्वारा सताई गई उस महिला ने जो कुछ भी टीवी चैनल को बताया वो वाकई काफी डरावना था। उस महिला ने बताया की राघवेंद्र नाम के शख्स ने महज इस गुस्से में उस महिला को प्रताड़ित किया क्योंकि उसकी ही जमीन पर काम करने वाले इस पीड़ित महिला के पिता ने कम मजदूरी मिलने के चलते काम करने से इनकार कर दिया था...और उसने इस कुकृत्य को अपने ही बेटी और पत्नी के सामने अंजाम दिया। उस महिला ने बताया कि जब वो उस वकील की पत्नी से कहती कि....दीदी प्लीज मुझे बचा लो....तुम भी तो एक औरत हो और दूसरी औरत की तकलीफ समझती हो....तो वो हंसती थी...और उसके साथ उसकी बेटी बी हंसती....और वो बेशर्म वकील राघवेंद्र उन दोनों के सामने उस बेबस महिला का रेप किया करता रहता था। वो बेबस अबला नारी चिलाती रहती...गिड़गिड़ती रही....लेकिन उन चार सालों में किसी ने भी उस अबला की पुकार नहीं सुनी...और ना ही समझी। शर्म है उस महिला जाति पर जो इस तरह के कृत्य को अपनी आंखों के सामने देख कर भी चुप थी और साथ ही में उस अबला की मदद करने के बचाये उस पर हो रहे अत्याचार का मजा ले रही थी। सही कहते है कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है। आज से चार साल पहले जब पहली बार राघवेंद्र ने उस महिला का पहली बार रेप किया अगर उस वक्त उसकी पत्नी और बेटी ने उसे रोका होता या उसके खिलाफ आवाज उठाई होती तो शायद आज वो औरत भी ताजी हवा में जीवन व्यतित कर ही होती। लेकिन हो ना सका। वो आज उपेक्षा की जिंदगी जीने को मजबूर है। आज जहां वो महिला अपनी बेवसी पर रो रही है वहीं पुलिस इंसानियत को शर्मशार करने वाली इस घटना से हैरान है। अधिकारी भी इसे इंसानियत के नाम पर कलंक करार दे रहे है।
खैर जीते जी चार साल नरक भोगने वाली उस महिला को आज़ादी तो मिल गई...लेकिन वो महिला आने वाली जिन्दगी में क्या उस अतीत की काली परछाई से बाहर निकल पाएगी..यह हमारे समाज के लिए एक सवाल है...जिसका जबाव शायद किसी के पास नहीं हैं.......

Sunday, April 25, 2010

थरुर का जाना....

लगातार अफवाहों से घिरे रहने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर यूपीए के मौजूदा कार्यकाल में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विदा होने वाले एकमात्र मंत्री बन गए हैं। इसके पहले कार्यकाल में ऐसा वाकया विदेश मंत्री नटवर सिंह की विदाई का हुआ था, हालांकि सद्दाम हुसैन की सरकार से ऑयल कूपन लेने के जिस मामले में उन्हें जाना पड़ा था, उसका उनके मंत्री-काल से कोई संबंध नहीं था। अब से कोई दस महीने पहले शशि थरूर का मंत्रिमंडल में आना भारतीय राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत की तरह देखा गया था। देसी सियासत की फिसलन भरी पगडंडियों पर पांव रखे बगैर, एक ग्लैमरस डिप्लोमेट की सर्वोच्च कूटनीतिक दायरे से सीधे लुटियन के टीले पर मारी गई सधी हुई छलांग। कुछ लोगों को तो उनके सुंदर चेहरे में भारत के बढ़ते इंटरनैशनल स्टेचर की बानगी नजर आने लगी थी। मंदी के माहौल में जब सरकार अपने सारे मंत्रियों के खर्चों में कटौती का ढिंढोरा पीट रही थी, तब शशि थरूर महीनों से एक फाइव स्टार होटल में डेरा डाले पाए गए थे। चौतरफा आलोचना के बाद आखिरकार उन्हें होटल छोड़ना पड़ा, लेकिन, इससे पहले वह ट्विटर पर अपने फॉलोअर्स को यह बताना नहीं भूले कि उनके आवास के मद में सरकार को कोई खर्च नहीं करना पड़ा है, इसमें जो भी पैसा लगा है, वह उन्होंने अपनी जेब से दिया है। पारंपरिक राजनीति से पंगा लेने का पिछले दिनों एक भी मौका उन्होंने नहीं छोड़ा और कई बार तो ट्विटर पर ऐसे बयान जारी किए, जो केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य के लिए बिल्कुल ही उचित नहीं कहे जा सकते थे। इसके बावजूद देश हर मौके पर उन्हें माफ करने को तैयार दिखा। मुखर शहरी मध्य वर्ग और युवा पीढ़ी के लोगों ने शशि थरूर की राजनीति को नए जमाने के पारदर्शी लोकतांत्रिक मिजाज के अनुरूप पाया और उनकी गलतियों को नजरअंदाज करने में उसे कोई परेशानी नहीं हुई। यह सिलसिला कभी-कभी 25 साल पहले की याद दिलाता था, जब राजीव गांधी के नेतृत्व में दून मंडली अचानक देश की सत्ता पर छा गई थी। समस्या यह है कि भारत जैसी विशाल बहुआयामी राजनीति में नए लोगों का उतरना जितना आसान है, इसमें उनका टिके रहना उतना ही मुश्किल है। अनजाने में ही यहां की राजनीति उनसे जवाबदेहियों की मांग करने लगती है, जबकि बिना कुछ किए-धरे ही उन्हें इतनी ताकत मिल चुकी होती है कि वे खुद को हवा में उड़ता महसूस कर रहे होते हैं। छन-छन कर आ रही रिपोर्टें बता रही हैं कि शशि थरूर इधर कुछ ज्यादा ही ऊंचा उड़ने लगे थे। लेकिन इनका कहीं ज्यादा चिंताजनक पहलू यह है कि सरकार में शामिल कुछ अन्य बड़े नाम आईपीएल के गंदले आकाश में थरूर से भी ऊंचा उड़ते आ रहे हैं। उनके नाम सामने आने से सरकार भी मुश्किल में पड़ सकती है, लेकिन अभी तक उन्हें ढील देते रहना क्या मुश्किलों को न्यौता देने जैसा नहीं था?